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Moradabad News : डॉ पवन कुमार जैन को मिली जैन शास्त्र में पीएचडी की उपाधि

(संवाददाता : अजय कुमार)
मुरादाबाद।  डा० पवन कुमार जैन ने तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय, मुरादाबाद के जैनोलॉजी विभाग के अन्तर्गत “ऐतिहासिक संदर्भों में उत्तर प्रदेश के जैन तीर्थ : एक अध्ययन” विषय पर शोध पूर्ण करके एक नया आयाम स्थापित किया। भारत वर्ष में केवल चार ही विश्वविद्यालयों में जैनोलॉजी विभाग हैं। इनमें मद्रास विश्वविद्यालय, मंगलायतन विश्वविद्यालय, जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं और तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय प्रमुख हैं।
कहने की आवश्यकता नहीं कि गुरुओं की प्रेरणा से तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय ने जैन विद्यार्थियों के लिए यह सुविधा प्रदान कर जैन धर्म के साहित्य एवं जैन धर्म के प्रचार एवं प्रसार के लिए अवसर प्रदान किया है। निःसंदेह जैनेत्तर समाज में जैन समाज के प्रति जो भ्रांतियां हैं उनके दूर करने में भी यह शोध सहायक होगा।
डॉ पवन कुमार जैन के सीनियर सिटीजन होने तथा सामाजिक जीवन में अति व्यस्त होने के बावजूद भी अपना शोध कार्य पूर्ण किया। इस शोध में उत्तर प्रदेश के जैन तीर्थों का इतिहास, जैन तीर्थों की महानता, महत्व और जैन दर्शन इत्यादि का वर्णन है। इस शोध से जैन समाज के इतिहास, जैन तीर्थों के ऐतिहासिक महत्व, मान्यताऐं एवं तीर्थों का प्रदेश की सांकृतिक विरासत में प्रत्यक्ष योगदान होगा। इससे जैन धर्म के अल्पज्ञात तीर्थ स्थलों के बारे में भी जानकारी आज की युवा पीढ़ी को प्राप्त होगी। इस शोध से यह भी निष्कर्ष निकाला गया कि उत्तर प्रदेश में जहां की 24 में से 18 तीर्थंकरों की जन्म स्थली है, यहां कभी जैन समाज का एक बड़ा केंद्र रहा है। आज उत्तर प्रदेश में जैन समाज की संख्या नगण्य हो रही है और वर्तमान में जो समाज यहां रह रहा है उनमें से अधिकांश मध्य प्रदेश और राजस्थान से स्थानांतरित होकर के यहां आए हैं।
डा० पवन जैन वैसे भी विभिन्न प्रकार के सामाजिक एवं शैक्षिक सेवा कार्यों में बढचढ़ कर हिस्सा लेते हैं। वह पूर्व से ही जैन समाज के लिए गौरव हैं उन्होंने जैन धर्म की प्रधानता के लिए उत्तर प्रदेश के सभी तीर्थों पर जो अपना शोध पूर्ण किया है निश्चित ही उसके पश्चात उनके गौरव में श्रीवृद्धि हुई है। पवन कुमार जैन के इस शोध के प्रकाशन के लिए कई प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। शीघ्र ही इस शोध के प्रकाशन के पश्चात जैनोलॉजी अनुशासन में शोध करने वाले छात्रों व नीति निर्धारकों के लिए यह शोध बहुत सहायक सिद्ध होगा।

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